RAKHI Saroj

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लेखनी प्रतियोगिता -06-Jan-2023

ज़ख्म

कुछ गहरे थे मेरे ज़ख्म जिन्हें छेड़ रही थी
लोगों की खिलखिलाहट भरी मुस्कान
कैसे समझाऊं इस जहां को अपना हाल
जिन्हें कुदरत का यह दर्द समझ ना आया
मोहब्बत की यह कैसी है कसमों कस जहां
मैंने खुद को हारने तलक जख्मों से भरा पाया
सांसों की डोर पुछ रही है जिंदगी में इतना
जख्मों का एहसास नहीं है जितना लोगों की 
हंसी में नहीं, यह सोच रही है जिंदगी की रूह।
              राखी सरोज

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6 Comments

Rajeev kumar jha

07-Jan-2023 08:09 PM

Nice 👍🏼

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RAKHI Saroj

07-Jan-2023 11:38 PM

Thank you

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Sachin dev

07-Jan-2023 02:30 PM

Well done

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RAKHI Saroj

07-Jan-2023 11:38 PM

Thank you

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Reena yadav

06-Jan-2023 09:18 PM

Nice 👌

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RAKHI Saroj

06-Jan-2023 11:03 PM

Thank you

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